बिटिया के नाम पाती... - 1 Dr. Vandana Gupta द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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बिटिया के नाम पाती... - 1

प्यारी बिटिया
ढेर सारा प्यार

मेरा पत्र पाकर तुम आश्चर्यचकित होंगी कि अभी तो मिलकर गयीं हैं मम्मा और रोज तो मोबाइल पर बात होती है, फिर पत्र क्यों?? बेटा! रोज बात करने के बाद भी बहुत कुछ अनकहा रह जाता है... पत्र पढ़ने के बाद इस क्यों का जवाब भी मिल जाएगा।
हाँ तो कहाँ से शुरू करूँ? तुम्हें हॉस्टल में रहते हुए पाँच वर्ष बीत चुके हैं, तुम डॉक्टर बनकर अपना बचपन का सपना पूरा करने वाली हो। मुझे बेहद खुशी होती है जब तुम मुझे अपनी बेस्ट फ्रेंड कहती हो... और हमने अपनी दोस्ती निभायी भी है। तुम्हारे पापा मुझसे नाराज भी होते हैं कि मैं अपनी उम्र और फर्ज़ भूल जाती हूँ कभी कभी, किन्तु तुम्हारे चेहरे की एक मुस्कान पर उनकी सौ नाराजगियाँ मुझे कबूल हैं। आज शॉपिंग मॉल में उस स्टोर पर वह खूबसूरत ड्रेस जब कीमत जानने के बाद तुमने लेने से यह कहकर मना कर दिया कि तुम्हें पहनने के बाद अच्छी नहीं लगी, तब मैंने अचानक महसूस किया कि मेरी बेटी बड़ी होकर समझदार भी हो गयी है। मुझे याद आया जब तुम्हारी खातिर मेरी तुम्हारे पापा से पहली बार लड़ाई हुई थी। तुम दो वर्ष की थीं तब, कॉलोनी में फेरी वाले से दो रुपए की प्लास्टिक की रिस्ट वॉच के लिए मचल रही थीं, काफी रोयीं थीं। पापा का कहना था कि मैं तुमसे ज्यादा महत्व दो रुपए बचाने को दे रही हूँ, जबकि मेरा सोचना था कि उस तरह की दो घड़ियाँ तुम्हारे पास पहले से हैं, तुम्हें जरूरत और शौक में अंतर समझना होगा, जरूरत होने पर मैंने दो सौ रुपए भी खर्च किए हैं और रोने के बाद जिद पूरी करना कदापि सही नहीं है। खैर.... इस तरह के काफी वाक्यात हैं, फिर कभी चर्चा करूँगी। मुझे याद आ रहा है कि हॉस्टल में तुम्हें छोड़कर आते वक्त मन कितना भारी था, तुम बहुत रोयी थीं, मैंने तुम्हारे सामने कंट्रोल किया पर कार में बैठते ही आँखे और दिल दोनों रो पड़े थे। तुम्हें काफी समझाया भी था कि हॉस्टल लाइफ एन्जॉय करना, किन्तु संस्कार मत भूलना। मुझे याद आ रहा है कि एक बार मेरे स्टाफ की पार्टी थी, शाम के समय और शोरगुल में तुम्हारा मिस कॉल मैंने मिस कर दिया था, बाद में आठ मिस्ड कॉल देखकर चिंतित होकर तुरन्त फोन लगाया कि क्या हुआ था? तुमने मासूमियत से कहा कि सब सहेलियाँ छप्पन दुकान जा रही थीं, तो अनुमति लेनी थी, बात नहीं हुई तो तुम नहीं गयीं थीं। मुझे गुस्सा आया था कि चली जाना था और मिस कॉल क्यूँ? कॉल किया करो, बैलेंस की इतनी चिंता क्यों? तुम्हारा और मेरा दोनों फोन रिचार्ज तो मुझे ही करवाना है, पर तुम्हें लगता था कि तुम्हारे खाते से अधिक खर्च नहीं होना चाहिए। शायद इसीलिए शॉपिंग करना हो तो तुम मुझे इंदौर बुलाती थीं, कि एक घण्टा ही तो लगता है। मुझे बाद में तुम्हीं ने बताया कि तुम अकेले जाती हो तो तीन सौ से अधिक का टॉप नहीं खरीदती, मेरे साथ हज़ार का खरीदने में भी नहीं सोचती। तुम हर छोटी बात भी मुझसे शेयर करती थीं, तुम्हारी सहेलियों के प्रेमप्रसंग भी, हर बार मुझे खुशी के साथ चिंता भी होती थी। मैंने पूछा था कि तेरे किस्से भी तेरी सहेली की मम्मी को पता होंगे? तुम मेरे गले में बाँहें डालकर बोली थीं कि मैं तो सबसे पहले आपको ही बताऊंगी। वाकई तुम मुझे हर बात बताती भी थीं। कब किसने प्रपोज किया और किसको भैया बोलकर नाराज किया। प्रथम वर्ष में तो चार बार तुमने सिम चेंज करवायी थी क्योंकि क्लास के लड़कों के पास नम्बर चला गया था तुम्हारा..... फिर जब एक सिटी सीनियर ने काफी मशक्कत से तुम्हारा मोबाइल नम्बर हासिल किया, तब मैंने समझाया था कि बेटा उसकी बहन मेरे कॉलेज में गेस्ट फैकल्टी है, मैं जानती भी हूँ, अब रहने दे, कब तक ऐसा चलेगा... कभी न कभी तो लड़कों से बात करनी ही होगी और तुम्हें ताकीद भी किया था कि फालतू बात मत करना किसी से..! मुझे क्या पता था कि नियति ने क्या तय कर रखा है। तुमने मुझे बताया था कि उसने तुम्हें प्रपोज किया और तुम्हें भी पसन्द है, मैं आनन फानन में आयी थी, उससे मिलकर अच्छा लगा था। मैंने यही कहा था कि " पढ़ाई पर फोकस करो, करियर अच्छा है तो सब साथ हैं वरना तुम दोनों भी साथ नहीं हो.." मुझे खुशी है कि तुमने निराश नहीं किया। गत माह ही पापा को बताया है और तबसे ही वे मुझसे भी नाराज़ हैं... आज उन्हें भी 'उससे' मिलवाने लायी थी, सोचा था कि तुम्हारा जन्मदिन भी मन जाएगा और मुलाकात भी कर लेंगे... अभी तक तो पापा ने कुछ प्रतिक्रिया नहीं दी है, न पॉजिटिव और न ही नेगेटिव... देखते हैं क्या कहेंगे, उनसे सुबह बात करूँगी।

अब आती हूँ मूल मुद्दे पर... बेटा वैसे तो पीढ़ी दर पीढ़ी काफी कुछ बदल जाता है, किंतु जब सदी बदलती है तो परिवर्तन तेजी से होता है.. हमने अपने माता पिता के सपने पूरे किए... और आज हम अपने बच्चों के सपने पूरे करना चाहते हैं। तुम्हारे पापा का गुस्सा और नाराजगी भी जायज है, उन्हें विश्वास ही नहीं होता है कि उनकी छोटी सी बेटी इतनी बड़ी हो गयी कि अपनी जिंदगी का इतना बड़ा फैसला खुद कर सकती है। पापा चाहते हैं कि जो संघर्ष हमने किया वह तुम न करो और इसीलिए वे धनाढ्य परिवार से आए रिश्तों को तवज्जो दे रहे हैं। मैं उन्हें समझाऊंगी कि मन की खुशी पैसे से नहीं खरीदी जाती, वे जानते भी हैं बस समझ नहीं पा रहे। मैं उन्हें विश्वास दिलाऊंगी कि तुम गलत नहीं हो और 'वह' अच्छा लड़का है, साथ ही हमें भी अपनी परवरिश पर भरोसा रखना होगा। अभी तो वे मुझसे ही नाराज़ हैं कि मैंने उन्हें इतने समय बाद बताया, पर बेटा मैं चाहती थी कि तुम्हारी पढ़ाई प्रभावित न हो और चीजें सही वक़्त पर सही तरीके से सामने आए... मैं जानती हूँ कि 'वह' तुम्हें खुश रखेगा और तुम भी 'उसका' ध्यान रखोगी... बहुत सारी छोटी छोटी खुशियाँ ही तो जिंदगी को गुलज़ार करती हैं। अभी तो बहुत सी बातें करनी हैं, पर सब धीरे धीरे... अभी तो तुम्हारे पापा को बता दूँ कि बेटी बड़ी होने के साथ ही समझदार भी हो गयी है और तुम्हारी पसन्द मुझे तो पसन्द है, उन्हें भी पसन्द आएगी, मुझे विश्वास है। अगली बार जब घर आओगी तब 'उसके' मम्मी पापा को बुलवा लेंगे... आगे की बातें भी तो तय करना है...!
शेष फिर कभी... अपना ध्यान रखना..

तुम्हारी दोस्त मम्मी..

©डॉ वन्दना गुप्ता
मौलिक